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वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर हेरफेर कर पत्नी और पुत्र के नाम करोड़ों की संपत्ति जोड़ने का आरोप

वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर हेरफेर कर पत्नी और पुत्र के नाम करोड़ों की संपत्ति जोड़ने का आरोप
ऋषिकेश: उत्तराखंड के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर अब पत्नी और पुत्र के नाम पर करोड़ों की संपत्ति जोड़ने का आरोप लगा है। कांग्रेस ने नामांकन भरते समय दाखिल शपथ पत्र में इस सच को छुपाने का आरोप लगाते हुए पूरे मामले को न्यायालय में चुनौती देने की बात कही है।

कांग्रेस नेता जयेंद्र रमोला ने की प्रेसवार्ता
शनिवार को त्रिवेणी घाट स्थित एक होटल में पत्रकारों से वार्ता करते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य जयेंद्र रमोला ने वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर पत्नी और पुत्र के नाम पर ऋषिकेश, देवप्रयाग और अन्य क्षेत्र में करोड़ों की भूमि और संपत्ति खरीदने का आरोप लगाया, उन्होंने इस दौरान संबंधित दस्तावेज भी प्रस्तुत किए। साथ ही यह दावा किया कि मंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने यह संपत्ति जोड़ी है।

रमोला ने कहा कि इस वर्ष जब वह विधानसभा क्षेत्र से विधायक का चुनाव लड़े थे तो उन्होंने अपने पुत्र और पत्नी के कालम के आगे रिक्त स्थान छोड़ा था। कहीं पर भी संपत्ति का जिक्र नहीं किया था।
कहा- करोड़ों की संपत्ति कहां से अर्जित की
रमोला ने कहा कि पत्नी और पुत्र वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर आश्रित हैं, बड़ा सवाल यह है कि यह करोड़ों की संपत्ति कहां से अर्जित की गई। रमोला ने आरोप लगाया कि विधानसभा के भीतर अवैध रूप से की गई नियुक्तियां, वित्त सचिव को एक वर्ष में कई बार पदोन्नति देने का मामला अभी सुर्खियों में है।

मंत्री की ओर से अपने पत्नी और पुत्र के नाम पर खरीदी गई करोड़ों की संपत्ति की जांच सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय (इडी) की ओर से की जानी चाहिए।
पूरे मामलों को न्यायालय में देंगे चुनौती
उन्होंने कहा कि इस मामले में वहां विधिक परामर्श ले रहे हैं। इसके बाद पूरे मामलों को न्यायालय में चुनौती दी जाएगी। इस दौरान एडवोकेट अभिनव मलिक,पार्षद देवेंद्र प्रजापति राकेश सिंह मियां, शकुंतला शर्मा, भगवान सिंह पंवार, अजीत सिंह गोल्डी आदि भी मौजूद रहे।

विवादित खसरा में कैसे जारी हो गई एनओसी
रमोला ने कहा कि भरत विहार ऋषिकेश में मंत्री के पुत्र के नाम से खरीदी गई भूमि न्यायालय की ओर से विवादित खसरा नंबर के रूप में दर्ज है। विवादित भूमि पर तहसील प्रशासन किसी को भी एनओसी जारी नहीं करता। लेकिन वर्ष 2019 में तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने इन्हें अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया और नगर निगम के भीतर संपत्ति स्वामी का नाम परिवर्तन भी हो गया। तत्कालीन एसडीएम के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग उन्होंने की।

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