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सरकारी जमीनों पर अवैध अतिक्रमण पर और सख्त हुआ हाईकोर्ट, सरकार को दिए यह निर्देश

सरकारी जमीनों पर अवैध अतिक्रमण पर और सख्त हुआ हाईकोर्ट, सरकार को दिए यह निर्देश
 उत्तराखंड सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण करने वालों की बढ़ेंगी मुश्किलें, हाईकोर्ट नैनीताल ने उत्तराखंड सरकार को दिए यह निर्देश

उत्तराखंड में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण करने वालों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सरकार से पूछा है कि बेनाप जमीन को वन भूमि घोषित करने के सरकार के 2011 के नोटिफिकेशन को कोर्ट निरस्त कर चुकी है।

इसके बावजूद सरकार बेनाप भूमि पर अतिक्रमण की छूट क्यों दे रही है? कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि हर जिले में डीएम की अध्यक्षता में जिला को-ऑर्डिनेशन कमेटी बनाई जाए। जिसमें सभी संबंधित विभागों के अधिकारी हों और हर माह में एक बार बैठक कर प्रत्यिके जिले में सरकारी भूमि हुए अतिक्रमण को लेकर कार्रवाई करें। अगली सुनवाई छह दिसंबर को होगी।

मामले के अनुसार, दिल्ली निवासी एक व्यक्ति ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजा था। इसमें कहा गया है कि नैनीताल के पदमपुरी में वन विभाग की भूमि और रोड के किनारे कुछ लोगों ने संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत से अतिक्रमण किया है। इस वजह से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

लिहाजा, इस अतिक्रमण को हटाया जाए। हाईकोर्ट ने इस मामले को जनहित याचिका के रूप में लेते हुए राज्य सरकार को प्रदेश की सभी सड़कों के किनारे हुए अतिक्रमण को हटाने के निर्देश दिए थे। मामले में अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने बताया कि कई विभागों ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश की है। जिसके बाद उन्होंने भी न्यायमित्र होने के नाते अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश की।

इसमें बताया गया है कि सरकारी बेनाप जमीनों पर भी कब्जा है जबकि 1998 का शासनादेश है कि इन सभी जमीन को रक्षित वन घोषित किया था। बावजूद इसके आज भी इन जमीनों पर निर्माण की छूट दी जा रही है। कोर्ट ने सरकार से इस मामले पर जवाब मांगा है कि कैसे इन जमीनों पर हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी निर्माण कार्य की छूट दी जा रही है।

नैनीताल पालिकाध्यक्ष के अधिकार सीज, ईओ निलंबित 
हाईकोर्ट ने नैनीताल के फ्लैट्स मैदान में झूलों का टेंडर में अनियमितता के मामले में नगर के पालिकाध्यक्ष सचिन नेगी के अधिकार सीज करने के साथ अधिशासी अधिकारी आलोक उनियाल को निलंबित कर दिया है। उनियाल को 50 हजार रुपये याचिकाकर्ता किशन पाल भारद्वाज को भुगतान करने को भी कहा है। अदालत ने मुख्य सचिव से पूरे मामले की जांच कर 10 दिन में रिपोर्ट मांगी है। इसके अलावा सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति इरशाद हुसैन की अध्यक्षता में भी जांच के लिए अलग से कमेटी गठित की है।

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