UK बोले तो Uttrakhand

अभी नही तो कभी नही

बागेश्वर: स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर जिला अस्पताल का गजब कारनामा, डीएम ने दिए जांच का आदेश

बागेश्वर: स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर जिला अस्पताल का गजब कारनामा, डीएम ने दिए जांच का आदेश

बागेश्वर: दूर दराज पहाड़ी क्षेत्रों में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की खबरें आए दिन सामने आती रहती हैं और अक्सर इन खबरों को प्रकाशित करते वक्त दिल उदास होता है लेकिन पहली बार एक तरफ बेहाल स्वास्थ्य सेवा और दुसरी तरफ सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों का निकम्मापन देखकर दिल दहल गया..
आजकल गर्मियों की छुट्टियां में परिवार के संग कुछ दिन के लिए जिला बागेश्वर के अंतर्गत आती कांडा तहसील में  आये थे कल अचानक खेलते खेलते तीन साल का बेटा गिर गया तथा कोहनी में हल्का फैक्चर आ गया..

कांडा अस्पताल में ऐक्स रे  है लेकिन आपरेटर नहीं

कोई अन्य विकल्प ना होने के कारण आनन फानन में तुरंत बेटे को लेकर कांडा सरकारी अस्पताल पंहुचे मौजूदा डाक्टर बोले ऐक्स रे करवाना पड़ेगा हमारे पास ऐक्स रे मशीन तो है लेकिन चलाने वाला कोई नहीं है तो आपको इसके लिए बागेश्वर जिला अस्पताल जाना पडेगा तुरंत गाडी दौडाई 26 किमी दूर बागेश्वर की तरफ...

जिला अस्पताल डाक्टर द्वारा ऐक्स रे  सहित तमाम समान बाहर से खरीदने की कहा गया

बागेश्वर जिला अस्पताल पंहुचते ही अस्पताल तो बंद था तो एक आम नागरिक की तरह एमरजैंसी में पंहुचे जहाँ एक लेडी डॉक्टर बैठी थी बाद में जिनका नाम डा.आशिता बताया गया ताजुब यह देखकर हुआ कि बच्चे को रोता देखकर भी वह टस से मस नहीं हुई जब उनसे पूछा गया मैडम ऐक्स रे  करवाना है तो बोली अस्पताल के ऐक्स रे ओपरेटर तो एक घंटे बाद आएंगे आपको जल्दी है तो बाहर ही "पारस" लैब है आप वहाँ ऐक्स रे करवा लें.. 


अब सवाल बच्चे का था तो रूकने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था पारस लैब गए 400 रूपये देकर ऐक्स रे  करवाया फिर मैडम के पास पंहुचे तो मैडम बोली जी कच्चा पलास्ट करना पडेगा आप पारस लैब से पीओपी स्लेब ( पलास्ट मे इस्तेमाल होने वाली ठोस पटी) ले आओ, फिर पारस लैब गए और 280 की पीओपी स्लेब लेकर आये और मौजूद कर्मचारी ने बच्चे के कच्चा पलास्ट कर दिया इसके बाद मैडम ने लिखकर दी एक सिंपल सी पीने वाली दर्द का दवाई और बोली इसे भी बाहर से ले लेना जो लगभग 90 रुपये के करीब थी..
और कमाल की बात यह कि यह सब सरकारी पर्ची पर बिना स्पष्ट किये कि बाहर से मंगाया गया है मेंशन किया गया था, और इससे भी बडी बात यह कि इस सब के दौरान मैडम ने बच्चे के हाथ को छूकर देखने तक की जहमत नहीं उठाई ( कथन की पुष्टि वहाँ लगा सीसीटीवी कर सकता है)


अब हमारे लिए तो यह पैसे बडी बात नहीं थी ना ही हमने  आनाकानी की क्योंकि विकल्प होता तो शायद हम यहाँ आते भी नहीं लेकिन ताजुब यह सोचकर हुआ कि जिला अस्पताल में रोजमर्रा की सिंपल सी चीजें भी नहीं है..
और दूर दराज से एमरजैंसी में कोई गरीब टैक्सी का 1000 - 1500 भाडा खर्च करके जिला अस्पताल में सस्ते इलाज की आस में आता है उसके पास पैसे नहीं है और आप उसे टैस्ट, ऐक्स रे के अलावा छोटी छोटी चीज के लिए जो आपको उसे मुफ्त में उपलब्ध करानी है और आपके बाप की भी नहीं है सरकारी है के लिए बाहर भेजते हैं वह क्या करेगा..?
आखिर एक गरीब आदमी कहाँ से लाएगा इतने पैसे..

डीएम बागेश्वर ने दिया जांच का आदेश

यह सब दिमाग में आते ही तुरंत डीएम बागेश्वर श्री विनित कुमार को फोन लगाया आखिर उनके दुरूस्त स्वास्थ्य सेवाओं के दावे के बावजूद भी ऐसा हाल क्यों..?
अपनी जनसेवा के लिए प्रसिद्ध डीएम बागेश्वर ने अपने चर परिचित अंदाज में तुरंत फोन उठाया और जब हमने उन्हें पुरे घटनाक्रम के बारे में बताया तो उन्हें काफी हैरानी हुई और उन्होंने मौजूद डाक्टर आशिता से बात कराने को कहा, डीएम साहब को लाईन पर देखकर डाक्टर साहिबा के होश उड गये तथा वह डीएम साहब के सवालों का कोई संतोषजनक उतर नहीं दे पाई जिसके बाद डीएम बागेश्वर ने पुरी घटना की जांच कर उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया, 


जिसके कुछ समय बाद जांच के नाम पर किसी टमटा का फोन आया पहले तो उसके मूहँ से निकल गया कि डाक्टर आशिता तो एमरजैंसी में बैठती ही नहीं हैं बाद में वो अपनी डाक्टर की पैरवी कर उलटा हमें ही दोषी बताने लगा कि अस्पताल में सब सुविधा थी डाक्टर आशिता का कहना है किि आपको ही जल्दबाजी थी..
अब सवाल यह कि आपके बच्चे का हाथ टूटा है वो रो रहा है पहले ही आप डेढ़ घंटे का सफर करके आ रहे हैं कोई भी मां बाप ऐसे में एक घंटा इंतजार करेगा क्या..?

दुसरा चलो ऐक्स रे में हमें जल्दबाजी थी लेकिन पीओपी स्लेब..? वो आपने क्यों बाहर से मंगाई

और एक सिंपल सी दर्द की दवाई..?  बाहर से क्यूँ..?

और अगर डाक्टर आशिता कि डयूटी एमरजैंसी में लगती ही नहीं तो वह वहाँ क्या कर रही थी..? और डयूटी डाक्टर कहाँ था..?

घटना ने अंदर तक हिला दिया और महसूस हुआ कि आखिर क्यूँ  गाँव के गाँव खाली हो रहे हैं क्यूँ अपनी जननी खुबसूरत वादियों में चाहकर भी कोई रहने को तैयार नहीं है, क्यूँ आखिर गरीब से गरीब आदमी भी सरकारी अस्पतालों से कनी काट रहा है..

यह लाखों की सरकारी तनख्वाह पाने के बाद भी सरकारी कुर्सियां तोड़ने वाले कुछ बेशर्म कर्मचारीयों की वजह से दूर दराज के मुश्किल हालात और भी भयानक होते जा रहे हैं..

गरीबों का हक डकार कर जरुरतमंदों का खून चूसकर भी  इनके पेट हैं की भरने का नाम नहीं लेते..

खैर जल्द मामले की जांच तो होगी ही, क्योंकि डीएम बागेश्वर खुद स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं, लेकिन ऐसे कुछ कुर्सी तोड़ कर्मचारी उनके कार्य पर भी बटा लगा रहे हैं..

बरहाल आपसे निवेदन है कि हालात से समझौता ना करें अपने हक़ के लिए लडना सीखें, ऐसा आपके साथ हो संबंधित अधिकारी तक शिकायत पंहुचाएं.. हमें मेसेज करें..
आओ मिलकर अपना प्रदेश संवारे, एकदम नहीं होगा,
लेकिन कोशिश करते रहें एकदिन जरूर होगा

जय हिंद जय उतराखंड

प्रदीप भारतीय🇮🇳👳

Post a Comment

0 Comments