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अब नशामुक्ति केंद्रों पर लागू होगी एसओपी , पंजीकरण अनिवार्य , जानिए पूरी एसओपी


अब नशामुक्ति केंद्रों पर लागू होगी एसओपी ,  पंजीकरण अनिवार्य , जानिए पूरी एसओपी
देहरादून : नशामुक्ति केंद्रों की मनमानी और इनमें घट रही अमानवीय घटनाओं पर अंकुश लगाने की दिशा में देहरादून जिले ने बड़ा कदम उठाया है। जिलाधिकारी डा. आर राजेश कुमार ने आदेश जारी कर नशामुक्ति केंद्रों को लेकर एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) लागू कर दी है। इसके तहत नशामुक्ति केंद्र के संचालन के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय (सीएमओ) में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। केंद्रों का पंजीकरण क्लिनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट व मेंटल हेल्थकेयर एक्ट में किया जाएगा। इसी के साथ देहरादून प्रदेश का पहला जिला बन गया हैं, जिसने नशामुक्ति केंद्रों के संचालन के लिए एसओपी लागू की है।

जिलाधिकारी डा. आर राजेश कुमार के आदेश के मुताबिक जो केंद्र वर्तमान में संचालित हो रहे हैं, उन्हें एक माह के भीतर पंजीकरण कराना होगा। पंजीकरण न कराने की दशा में संबंधित केंद्र बंद करा दिए जाएंगे। पंजीकरण के लिए 50 हजार रुपये शुल्क तय किया गया है। नशामुक्ति केंद्रों को हर साल पंजीकरण का नवीनीकरण कराना होगा और इसके लिए 25 हजार रुपये शुल्क तय किया गया है।

पंजीकरण आवेदन के 30 दिन के भीतर होगा निस्तारण

नशामुक्ति केंद्र के संचालन के लिए आवेदन करने के 30 दिन के भीतर मुख्य चिकित्साधिकारी टीम गठित कर केंद्र का निरीक्षण कराएंगे और देखा जाएगा कि वहां नशामुक्ति केंद्र में नशा छुड़ाने समेत अन्य व्यवस्था उपयुक्त हैं या नहीं। इसी आधार पर आवेदन का निस्तारण किया जाएगा।

न्यूनतम 20-25 बेड के होंगे नशामुक्ति केंद्र


नशामुक्ति केंद्र के लिए छोटी श्रेणी में 20 से 25 बेड होने आवश्यक हैं। मध्यम श्रेणी में 26 से 40 बेड व बड़ी श्रेणी में 41 से अधिक बेड वाले नशामुक्ति केंद्रों को रखा जाएगा। केंद्र के संचालन के लिए 60 वर्गफीट प्रति बेड का क्षेत्रफल अनिवार्य किया गया है। सभी केंद्रों में 20 फीसद बेड जिला प्रशासन, पुलिस, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण आदि के माध्यम से रेस्क्यू किए गए व्यक्तियों के लिए आरक्षित रखे जाएंगे।

प्रति मरीज अधिकतम 10 हजार रुपये फीस तय

जिला प्रशासन ने नशामुक्ति केंद्रों के लिए प्रति व्यक्ति प्रतिमाह 10 हजार रुपये अधिकतम फीस का भी निर्धारण कर दिया है। इससे अधिक फीस किसी भी भर्ती व्यक्ति से या उसके स्वजन से नहीं ली जाएगी।

केंद्रों में यह स्टाफ रखना जरूरी

फिजीशियन- एमसीआइ में पंजीकरण जरूरी, पार्टटाइम भी उपयुक्त, मगर सप्ताह में न्यूनतम 21 घंटे की उपस्थिति जरूरी।
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ- पार्ट-टाइम व आन काल पर उपलब्ध होना जरूरी।
बाल रोग विशेषज्ञ- 18 वर्ष से आयु के व्यक्तियों के भर्ती होने की दशा में पार्ट-टाइम या आन काल।
मनोचिकित्सक- पार्ट-टाइम तैनाती भी लागू, सप्ताह में 21 घंटे उपस्थिति जरूरी। भर्ती कराने से पूर्व मनोचिकित्सक से परीक्षण कराना जरूरी।
काउंसलर- संबंधित विषय में न्यूनतम स्नातक की डिग्री जरूरी, प्रति 20 व्यक्ति पर एक काउंसलर की तैनाती आवश्यक।
नर्सिंग स्टाफ- न्यूनतम एक नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति जरूरी।
सुरक्षा गार्ड- 24 घंटे के हिसाब से हर समय एक गार्ड की ड्यूटी जरूरी।
अन्य स्टाफ- जरूरत के मुताबिक।
नशामुक्ति केंद्रों पर यह नियम भी लागू


नशामुक्ति केंद्रों में भर्ती से पहले संबंधित व्यक्ति का जिला अस्पताल में तैनात चिकित्सक एवं मनोचिकित्सक से स्वास्थ्य व मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाएगा।
राज्य के अन्य जिलों से भर्ती किए जाने वाले व्यक्तियों का संबंधित जिले के जिला अस्पताल से रेफरल लेटर जारी करना होगा।
सभी मरीजों का डाटा मैनुअल व डिजिटल रूप में तैयार किया जाएगा। इसमें मरीजों के स्वजन आदि की जानकारी भी दर्ज होगी।
केंद्र में पुस्तकालय व मनोरंजन के आवश्यक साधन भी उपलब्ध कराए जाएंगे।
सभी केंद्रों में अनिवार्य रूप से सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे और उसका बैकअप भी रखा जाएगा। 15-15 दिन के अंतराल में फुटेज का आवलोकन संबंधित थानाध्यक्ष/तहसीलदार को कराना होगा।
मरीजों को पोषणयुक्त भोजन दिया जाएगा और डाइटचार्ट तैयार किया जाएगा।
केंद्र में प्रतिदिन की जा रही काउंसिलिंग व अन्य गतिविधियों को आडियो-विजुअल माध्यम से रिकार्ड किया जाएगा और उसे प्रतिमाह जिलाधिकारी व मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय को उपलब्ध कराना होगा।
नशामुक्ति केंद्रों की समय-समय पर जांच करेगी समिति

नशामुक्ति केंद्रों की व्यवस्था की जांच को जिलाधिकारी ने समिति का गठन किया है। इसमें मुख्य विकास अधिकारी, मुख्य चिकित्साधिकारी, पुलिस अधीक्षक (नगर), संबंधित उपजिलाधिकारी/सिटी मजिस्ट्रेट व जिला समाज कल्याण अधिकारी को शामिल किया गया है। समिति केंद्रों का निरीक्षण करती रहेगी और प्रत्येक तीन माह में समिति बैठक कर नशामुक्ति केंद्रों की व्यवस्था के संबंध में जिलाधिकारी कार्यालय को रिपोर्ट उपलब्ध कराएगी। नशामुक्ति केंद्रों का निरीक्षण माह में एक बार संबंधित कोतवाली/थाना की ओर से किया जाएगा।

अगस्त माह में क्लेमेनटाउन स्थित नशामुक्ति केंद्र वाक एंड विन सोवर लिविंग होम में युवती के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया था। तब जागरण ने प्रमुखता से इस आशय की खबर प्रकाशित की थी कि नशामुक्ति केंद्र किसी भी विभाग की निगरानी के बिना मनमर्जी से संचालित किए जा रहे हैं। इसका संज्ञान लेकर जिलाधिकारी डा. आर राजेश कुमार ने तत्काल प्रभाव से एसओपी तैयार करने के लिए मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में समिति गठित कर दी थी। वहीं, कुछ समय पहले रिस्पना पुल के समीप लाइफ केयर रिहैब सेंटर में एक युवक की मौत व अन्य को पीटने की घटना सामने आ चुकी हैं। तमाम नशामुक्ति केंद्रों में भर्ती व्यक्तियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। हालांकि, अब जिला प्रशासन की ओर से एसओपी लागू कर दिए जाने के बाद नशामुक्ति केंद्रों की मनमानी पर अंकुश लग पाएगा।

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