UK बोले तो Uttrakhand

अभी नही तो कभी नही

टोक्यो ओलंपिक : हाकी में ‘हैट्रिक लगा इतिहास रचने वाली उतराखंड की बेटी वंदना कटारिया का संघर्ष...

टोक्यो ओलंपिक : हाकी में  ‘हैट्रिक लगा इतिहास रचने वाली उतराखंड की बेटी वंदना कटारिया का संघर्ष... 
हरिद्वार : इस टोक्यो ओलंपिक  में भारतीय हॉकी टीम के साथ-साथ महिला हॉकी टीम ने भी धूम मचा दी शुक्रवार को महिला हॉकी टीम ने करो या मरो मैंच में दक्षिण अफ्रीका को 4-3 से हराकर टोक्यो ओलंपिक में तहलका मचा दिया और इस मैच की हीरो रहीं हरिद्वार में रहने वाली उतराखंड की बेटी वंदना कटारिया, 
 वंदना ने इस मैच में एक के बाद एक तीन गोल कर टीम इंडिया को ऐतिहासिक जीत दिलाई। और इसके साथ ही इतिहास रच ओलंपिक में हैट्रिक गोल करने वाली वंदना भारत की पहली महिला खिलाड़ी बन गई हैं। लेकिन देश के लिए इस ऐतिहासिक जश्न के पीछे छिपी है एक लंबे संघर्ष कडी मेहनत के साथ समाज का उपहास और घर की मजबूरियों की दिल को  छू लेने वाली एक प्रेरणादायी कहानी, आइए जानते है़ उतराखंड की हैट्रिक गर्ल वंदना कटारिया के संघर्ष की कहानी... 

परिवार के लोग उड़ाते थे मजाक

वंदना कटारिया हरिद्वार के रोशनाबाद की रहने वाली हैं। उनके पिता हरिद्वार भेल में कार्यरत थे। पिता की देखरेख में ही वंदना ने अपनी हॉकी की यात्रा शुरू की। वंदना ने जब हॉकी खेलना शुरू किया तो स्थानीय लोगों और परिवार के कुछ सदस्यों ने उनका मजाक उड़ाया। लेकिन उनके पिता नाहर सिंह और मां सोरन देवी ने इस बात को नजरअंदाज कर अपनी बेटी के सपने को साकार करना शुरू कर दिया। लाखन कटारिया, वंदना के के अनुसार उनकी दोनों बहनों के पास एक जुते एक जर्सी थी बहने आपस मे खेलने के लड़ पड़ती थीं. जूते, जर्सी सब दिन तय करके एक एक दिन खेलने जाते थे

ओलंपिक के कारण पिता के अंतिम दर्शन में नहीं गई

बतादें कि हाल ही में 30 मई को हृदयगति रूकने से वंदना के पिता का निधन हो गया था। पिता के मौत के बाद वंदना उनके अंतिम दर्शन में नहीं जा पाई थीं। क्योंकि उस समय वंदना बंगलुरू में टोक्यो ओलिंपिक की तैयारियों में जुटी थी। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हुए मैच में शानदार प्रदर्शन करने के बाद वंदना ने पिता को याद करते हुए कहा कि उनका सपना ओलिंपिक में मेडल जीतकर पिता को श्रद्धांजलि देना है।

पिता की इच्छा थी कि बेटी गोल्ड जीते

वंदना के पिता की इच्छा थी कि बेटी ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता टीम का हिस्सा बनें। इस कारण से वो अंतिम विदाई में घर जाने से अच्छा अपने पिता के सपने को साकार करने के बारे में सोचा। हालांकि, घर न जाने के फैसले पर कायम रहना उनके के लिए आसान नहीं था। ऐसे में उनके भाई पंकज और मां सोरण ने संबल प्रदान किया। मां सोरण देवी ने वंदना से कहा कि जिस काम के लिए मेहनत कर रही हो पहले उसे पूरा करो, पिता का आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहेगा।

पैसों की कमी के कारण घर नहीं जा पाती थी

वंदना ने प्रोफेशनल तौर पर मेरठ से हॉकी शुरूआत की। इसके बाद वह लखनऊ स्पोट्स हॉस्टल पहुंची। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक ने होने के कारण उन्हें अच्छी किट और हॉकी स्टिक खरीदने में दिक्कत होती थी। वंदना के सामने कई मौके ऐसे भी आए जब हॉस्टल की छुट्टीयों में साथी खिलाड़ी घर चले जाते थे, लेकिन वो पैसों की कमी के कारण घर नहीं जा पाती थीं। ऐसे में उनके कोच मदद के लिए आगे आते थे।

2010 में वंदना का नेशनल महिला हॉकी टीम में सिलेक्शन हुआ था।
7 भाई बहनों में सबसे छोटी हैं वंदना
वंदना अपने 7 भाई बहनों में सबसे छोटी हैं। वंदना के 5 भाई बहन खेल से ही जुड़े हैं। बड़ी बहन रीना कटारिया भोपाल एक्सीलेंसी में हॉकी कोच और छोटी बहन अंजलि कटारिया हॉकी खिलाड़ी हैं। भाई पंकज कराटे और सौरभ फुटबॉल खिलाड़ी एवं कोच हैं।

2010 में नेशनल टीम में सिलेक्शन हुआ
वंदना के पिता BHEL में काम करते थे। वंदना बताती हैं, "कई बार हालात ऐसे हो जाते थे कि बाहर ट्रेनिंग करने के लिए मेरे पास पैसे नहीं होते थे। पापा उधार लेकर मुझे ट्रेनिंग के लिए भेजते थे। 2005 में मैंने उतर प्रदेश टीम से खेलना शुरू किया। मेरी किस्मत अच्छी थी कि 2011 में स्पोर्टस कोटे से रेलवे में जूनियर TC पद पर जॉब लग गई। 2010 में मेरा नेशनल महिला हॉकी टीम में सिलेक्शन हो गया।"

2013 महिला हॉकी जूनियर वर्ल्ड कप में उन्होंने सबसे ज्यादा गोल दागे।

 2013 महिला हॉकी जूनियर वर्ल्ड कप में उन्होंने सबसे ज्यादा गोल दागे और टीम को ब्रॉन्ज मेडल जीतने में मदद की। वंदना ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जूनियर वर्ल्ड कप के बाद मीडिया वालों ने उनके पिता का इंटरव्यू लिया। उस वक्त उनकी आंखों में आंसू थे। पिता को गर्व कराना उनके हॉकी के सफर में सबसे अच्छे पलों में से एक है।

एक नजर वंदना के हाकी के सफर पर 

वंदना 2013 में जापान में हुई तीसरी एशियन चैंपियनशिप में टीम इंडिया में शामिल थीं। टीम ने सिल्वर मेडल जीता।
2014 में कोरिया में हुए 17वें एशियन गेम्स में भी वे टीम में थीं। टीम इंडिया ने ब्रॉन्ज मेडल जीता।
2016 में सिंगापुर में हुई चौथी एशियन चैंपियनशिप में वंदना ने टीम इंडिया को गोल्ड मेडल जीतने में मदद की।
वंदना 2018 में जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीतने वाली टीम इंडिया का हिस्सा थीं।
2016 में हुए रियो ओलिंपिक में भी वे इंडियन स्क्वॉड का हिस्सा रहीं। हालांकि टीम को क्वार्टर फाइनल में हार का सामना करना पड़ा।
2018 में गोल्ड कोस्ट में हुए 11वें कॉमनवेल्थ गेम्स में वंदना ने टीम इंडिया का प्रतिनिधित्व किया। टीम चौथे स्थान पर रही थी।
2021 में अर्जुन अवॉर्ड के लिए नामित हुईं
वंदना 2014 एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली टीम इंडिया का हिस्सा रहीं। रियो ओलिंपिक में भी उन्होंने टीम इंडिया का प्रतिनिधित्व किया था। कटारिया भारत के लिए अब तक 218 मैच खेल चुकी हैं और 58 गोल किए हैं।

वंदना नेशनल टीम में सिलेक्‍शन का पूरा श्रेय अपने के कोच विष्णु प्रकाश शर्मा और पूनम लता को देती हैं। अर्जेंटीना की लुसियाना आयमार उनकी पसंदीदा खिलाड़ी हैं। 2021 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड के लिए भी नामित किया गया था।

" वंदना कटारिया हमें गर्व है आप पर "
प्रदीप भारतीय🇮🇳👳

Post a Comment

0 Comments