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जानिए कौन हैं उतराखंड में सैलाब का सीना चीर जानें बचा रहे नेवी के जांबाज कमांडो "मार्कोस"

जानिए कौन हैं उतराखंड में सैलाब का सीना चीर जानें बचा रहे नेवी के जांबाज कमांडो "मार्कोस"
मार्कोस नेवी की खास यूनिट हैं, जिसके कमांडो गहरे-उफनते पानी में भी ऑपरेशन्स को अंजाम दे पाते हैं. ये जम्मू-कश्मीर की झेलम नदी में भी कई खतरनाक ऑपरेशन्स पूरे कर चुके.
उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने से ऋषिगंगा में जल प्रलय आ गई. इसमें लगभग 200 लोग अब भी लापता हैं, वहीं बड़ी संख्या में लोगों को बचाकर सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया. ये सारा राहतकार्य सेना लीड कर रही है. इसमें भी भारतीय सेना के खास कमांडो मार्कोस (MARCOS) सबसे आगे हैं. पानी के सैलाब को चीर सकने की जांबाजी के कारण इन मरीन कमांडो को मगरमच्छ भी कहा जाता है.
साल 2013 की केदारनाथ आपदा पिछले दो दिनों से लगातार ताजा हो रही है. उस दौरान तूफानी बारिश के कारण मंदाकिनी नदी में बाढ़ आ गई थी, जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए. इस दौरान पुलिस और स्थानीय दलों के अलावा लगभग एक लाख जानें सेना के जवानों ने बचाई थीं. तभी पहली बार मार्कोस नाम उभरकर आया. उन्होंने उफनती लहरों के बीच जाकर लोगों को रेक्स्यू किया था.. 
,खतरनाक नदियों और समंदर में चलता है मिशन 
साल 2014 में जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ के दौरान भी इन कमांडोज ने बढ़-चढ़कर काम किया. कुल मिलाकर उत्‍तराखंड की पहाड़‍ियां हो या जम्‍मू कश्‍मीर की झेलम, चिनाब जैसी उफनती नदियां या फिर गहरा समुद्र, हर जगह गोते लगाकर लोगों की जान बचाने का हौसला और कुशलता रखते हैं.
ये नेवी की खास यूनिट हैं, जिन्हें पानी से लड़ने में महारथ होती है. वैसे तो इन्हें मार्कोस कहा जाता है. लेकिन आधिकारिक तौर पर इन्हें मरीन कमांडो फोर्स (MCF) कहा जाता है. स्पेशल ऑपेरशन्स के लिए प्रशिक्षित ये यूनिट अनकंवेंशनल वॉरफेयर, होस्‍टेज रेस्‍क्‍यू, पर्सनल रिकवरी जैसी कई मुहिम में शामिल होती रही है.
कब बना था मार्कोस
मार्कोस का गठन साल 1987 की फरवरी में हुआ था. इससे पहले सत्तर के दशक में भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था. इसी दौरान ये बात महसूस की गई कि जलसेना के पास स्‍पेशल कमांडो से लैस एक टीम होनी ही चाहिए. इस सोच ने अप्रैल 1986 में आकार लेना शुरू किया. नेवी ने मैरीटाइम स्‍पेशल फोर्स की योजना शुरू की. इसका उद्देश्य ऐसे कमांडो तैयार करना था जो खास ऑपरेशन जैसे काउंटर टेररिस्ट मुहिम चला सकें.
कमांडो तैयार करने के लिए नेवी के ही लोगों को अलग प्रशिक्षण दिया गया. स्थानीय स्तर पर ट्रेनिंग के बाद इन्हें अमेरिका में नेवी सील्‍स कमांडो के साथ ट्रेनिंग मिली और फिर ब्रिटेन में भी ट्रेनिंग दी गई. प्रशिक्षण से तैयार मार्कोस ने जम्मू कश्मीर की झेलम नदी में और वुलार झील में कई मुहिम चलाई और आतंक से जुड़ी चीजें, योजनाएं और हथियार आदि पकड़े. अब भी झेलम नदी के आसपास मार्कोस की तैनाती रहती है, जो सीमा पार आतंक पर नजर रखते हैं.
मार्कोस में कितने कमांडो हैं, इस बारे में खास जानकारी नहीं है लेकिन माना जाता है कि नेवी में समुद्री ऑपरेशन्स के लिए कम से कम 2000 मार्कोस कमांडो हैं. वे समय-समय पर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई का हिस्सा बनते आए हैं. जैसे वे अस्सी के आखिरी दौर में श्रीलंका में 'ऑपरेशन पवन' का हिस्सा थे. इसी तरह से मालदीव में ऑपरेशन कैक्टस अंजाम दिया गया था, जिसमें मार्कोस की मदद से ही तत्कालीन सरकार ने तख्तापलट रोका था.
साल 2020 से भारत-चीन के बीच भी पूर्वी लद्दाख में तनाव गहराया हुआ है. इसमें भी कथित तौर पर लद्दाख में मार्कोस की तैनाती की गई है. इस आशय की रिपोर्ट हिंदुस्तान टाइम्स में आई थी. पेंगोंग झील के आसपास ये कमांडो तैनात हैं ताकि चीनी गतिविधि पर नजर रख सकें और गलत इरादों को फेल कर सकें.
समुद्री गतिविधियों का हिस्सा होने के कारण जाहिर है कि केवल मजबूती से काम नहीं चलेगा, बल्कि कमांडो को पानी में ही फैसला ले सकने लायक मजबूत दिमाग का भी होना चाहिए. यही कारण है कि नेवी की इस खास फोर्स में 20 साल के युवाओं को लिया जाता है. इसके लिए चुनाव की प्रक्रिया काफी मुश्किल है लेकिन इससे भी मुश्किल होती है यहां ट्रेनिंग.
मार्कोस की ट्रेनिंग ढाई से तीन साल तक चलती है, जिसके बाद वे तूफानी लहरों को काटकर भी अपने लक्ष्य को अंजाम देने में सफल हो पाते हैं. वैसे बेसिक ट्रेनिंग 6 महीने चलती है लेकिन तब कमांडो खास ऑपरेशन्स का हिस्सा बनने लायक तैयार नहीं होते हैं. भारत में ट्रेनिंग के बाद इन्हें अमेरिकी और ब्रिटिश नेवी के साथ भी प्रशिक्षण मिलता है.

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