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किसान आंदोलन : किसानों से बातचीत के बीच केंद्र ने किया सुप्रीम कोर्ट का रुख़

किसान आंदोलन : किसानों से बातचीत के बीच केंद्र ने किया सुप्रीम कोर्ट का रुख़
केंद्र और किसान यूनियनों के बीच आठवें दौर की वार्ता बिना किसी समझौते के ख़त्म हो गई.

सुप्रीम कोर्ट की इस मुद्दे पर 11 जनवरी को होने वाली अगली सुनवाई के बाद 15 जनवरी को नौवें दौर की बातचीत शुरू होगी.

किसान यूनियन के नेताओं के अनुसार, केंद्र ने उन्हें कहा है कि बेहतर है ये मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय हल करे. केंद्र ने किसानों को अगली सुनवाई में पेश होने को कहा है. सरकार का कहना है कि वो इस मामले के जल्द समाधान के लिए रोज़ सुनवाई करने की अपील करेगा.

अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू के अनुसार केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इस बात की पुष्टि नहीं की है.


किसान नेताओं ने कहा कि नीतिगत मुद्दों को अदालत के ज़रिए तय नहीं किया जाना चाहिए, अदालत केवल क़ानूनों की संवैधानिक वैधता की जांच कर रही है.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बैठक के बाद पत्रकारों से कहा, “हमारे लोकतंत्र में संसद जो क़ानून बनाती है, उसे जांचने का सुप्रीम कोर्ट के पास पूरा अधिकार है. अदालत जो भी फ़ैसला देती है, सरकार उसका पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है."

वहीं, महिला किसान अधिकार मंच की नेता कविता कुरुगंती ने कहा, "लोकतंत्र के लिए यह दुखद दिन है जब बातचीत के बीच में चुनी हुई सरकार सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेती है और कहती है कि हमें न्यायालय पर निर्भर होना पड़ेगा. ये लाखों किसानों की जीविका का मामला है. ये एक नीतिगत फ़ैसला है जिसे किसानों के साथ परामर्श कर लिया जाना चाहिए.”

अखिल भारतीय किसान सभा के हन्नान मुल्ला ने कहा, “अदालत का फैसला चाहे जो भी हो, अगर यह किसानों के ख़िलाफ़ है, तो हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे. ज़रूरत पड़ने पर हम जेल जाएंगे. ये क़ानून किसानों के लिए एक मौत की घंटी हैं.”

बैठक एक तनावपूर्ण स्थिति में शुरू हुई थी. केंद्र ने कहा कि वो तीन क़ानूनों को रद्द नहीं कर सकता है और न ही रद्द करेगा, क्योंकि पूरे देश के हित के साथ-साथ उन किसानों के हित को भी देखने की ज़रूरत है जो क़ानूनों का समर्थन करते हैं.


नरेंद्र तोमर ने किसान यूनियनों को क़ानून हटाने के अलावा किसी और वैकल्पिक प्रस्ताव के साथ ना आने के लिए दोषी ठहराया.

इस प्वाइंट पर भारतीय किसान यूनियन के एक गुट के प्रमुख बलबीर सिंह राजेवाल ने सरकार पर आरोप लगाते हुए अपनी आवाज उठाई. यूनियन के नेताओं ने कहा कि जब तक विवादित क़ानूनों को रद्द नहीं किया जाता, तब तक वे घर नहीं लौटेंगे. उन्होंने ‘या जीतेंगे या मरेंगे’ के नारे लगाए और अपनी मेज थपथपाने लगे.

किसानों ने सम्मेलन कक्ष से जाने से इनकार कर दिया, जबकि सरकारी प्रतिनिधिमंडल एक घंटे के ब्रेक के लिए चला गया था.

भारतीय किसान यूनियन के हरियाणा गुट के प्रमुख गुरनाम सिंह चढुनी ने कहा, “मुझे अगली बैठक को लेकर कोई उम्मीद नहीं है. सरकार केवल एक ही बात दोहरा रही है, वे हमारी बिल्कुल नहीं सुन रहे हैं. लेकिन हम बातचीत के टूटने के लिए ज़िम्मेदार नहीं होंगे. इसलिए हम 15 जनवरी को वापस आएंगे."

“हम सभी गणतंत्र दिवस पर अपने ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली आएंगे. शायद तब वे हमारी बात सुनेंगे. ”

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